प्रियंका चोपड़ा का नाम आज ग्लोबल आइकॉन की तरह लिया जाता है। वे भारतीय सिनेमा की ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने देश से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न केवल खुद की पहचान बनाई, बल्कि भारत का नाम भी रोशन किया। मगर इस सफलता की राह आसान नहीं थी। बॉलीवुड में अपनी शुरुआत से लेकर हॉलीवुड तक का सफर तय करने में प्रियंका को जिन संघर्षों से गुजरना पड़ा, उनमें सबसे कठिन था महिला होने का एहसास। एक समय में उन्होंने सिमी ग्रेवाल के मशहूर शो ‘रॉन्डिवू विद सिमी ग्रेवाल’ में खुलकर अपने इस दर्द को बयां किया था कि कैसे उन्हें कई बार लगा, “काश मैं लड़का होती।”
प्रियंका का दर्द: काश मैं लड़का होतीhttp://प्रियंका का दर्द: काश मैं लड़का होती
साल 2006 में जब प्रियंका चोपड़ा सिमी ग्रेवाल के शो पर आईं, तो उन्होंने अपनी जिंदगी के कई पहलुओं पर खुलकर चर्चा की। एक ऐसा क्षण भी आया जब उन्होंने अपनी दिल की बात साझा की, जो कि एक महिला होने के संघर्ष से जुड़ी थी। प्रियंका ने कहा, “काश मैं लड़का होती।” यह एक साधारण सी इच्छा नहीं थी, बल्कि उनके लिए यह उस दर्द और संघर्ष की अभिव्यक्ति थी, जिससे उन्हें रोज़ गुजरना पड़ता था। उनका मानना था कि अगर वे लड़का होतीं तो उनकी जिंदगी की आधी मुश्किलें कम हो जातीं।
प्रियंका का कहना था कि महिलाओं को लगातार एक सामाजिक दबाव के साथ जीना पड़ता है। उनका बयान, “लड़की होना बहुत मुश्किल है, काश मैं कभी लड़का होती,” यह दर्शाता है कि समाज में महिलाओं के प्रति किस तरह के मानदंड रखे जाते हैं। उन्होंने कहा कि अगर वे लड़का होतीं, तो उन्हें अपनी वेशभूषा, हावभाव, और यहां तक कि अपनी बातों का भी खास ख्याल नहीं रखना पड़ता।
बॉलीवुड में महिला कलाकारों का संघर्ष
बॉलीवुड में सफलता पाना अपने आप में एक चुनौती है, खासकर तब जब आप एक महिला हों। प्रियंका चोपड़ा ने अपने इंटरव्यू में खुलासा किया कि कैसे बॉलीवुड में एक्ट्रेसेस के लिए अपनी जगह बनाना ज्यादा मुश्किल होता है। उन्होंने कहा कि पुरुष कलाकारों की तुलना में महिला कलाकारों को न केवल समाज की कठोर अपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें हर समय अपने व्यक्तित्व का ध्यान भी रखना पड़ता है। प्रियंका का यह बयान इस ओर भी इशारा करता है कि किस तरह बॉलीवुड में महिला कलाकारों का संघर्ष उनके पुरुष साथियों से कहीं ज्यादा कठिन है।
यह केवल प्रियंका का अनुभव नहीं है; बॉलीवुड में कई अन्य अभिनेत्रियों ने भी इस तरह के संघर्ष का सामना किया है। एक्ट्रेस होने का मतलब है कि वे हमेशा सुर्खियों में रहती हैं और किसी भी छोटी सी गलती के लिए उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। चाहे वह कपड़ों का चुनाव हो या फिल्मों में भूमिका, उन्हें हर चीज के लिए समाज के मानदंडों के अनुसार जीना पड़ता है।
बॉलीवुड का काला सच: लैंगिक असमानता और अपेक्षाएँ
बॉलीवुड में लैंगिक असमानता का मुद्दा आज भी प्रासंगिक है। जब प्रियंका ने सिमी ग्रेवाल के सामने यह बात कही कि लड़कों को लड़कियों की तुलना में कम जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है, तो यह उनके अनुभव का एक सच्चा चित्रण था। बॉलीवुड में महिला कलाकारों से हर समय एक आदर्श छवि बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। पुरुष कलाकारों के लिए वही नियम नहीं होते। एक्ट्रेसेस को न केवल स्क्रीन पर बल्कि ऑफ-स्क्रीन भी समाज के तय मानकों के अनुसार जीना पड़ता है।
प्रियंका का यह दर्द यह भी दर्शाता है कि एक्ट्रेसेस को लगातार “लुक्स,” “कपड़े,” और “व्यवहार” के आधार पर जज किया जाता है। इस तुलना में, पुरुष कलाकारों को अधिक स्वतंत्रता दी जाती है। प्रियंका के इस बयान ने एक बार फिर से इस मुद्दे को सामने रखा कि क्यों बॉलीवुड में महिलाओं को अपनी असली पहचान बनाए रखना इतना मुश्किल होता है।
हॉलीवुड में नई पहचान: ग्लोबल आइकॉन का सफर
बॉलीवुड में संघर्ष करने के बाद, प्रियंका ने हॉलीवुड में भी अपनी जगह बनाई। यह किसी भी भारतीय कलाकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने हॉलीवुड में भी खुद को साबित किया और ‘क्वांटिको,’ ‘बेवॉच,’ और अब ‘सिटाडेल’ जैसी मशहूर प्रोजेक्ट्स में काम किया। प्रियंका चोपड़ा के हॉलीवुड में जाने का यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने इसे अपने अनुभव और अपने संघर्षों से हासिल किया।
प्रियंका चोपड़ा अब ‘सिटाडेल 2’ में एजेंट नादिया सिंह के किरदार में नजर आने वाली हैं। यह शो रुसो ब्रदर्स द्वारा निर्देशित है, और इसमें प्रियंका का किरदार एक बेहद मजबूत और निडर महिला का है। इस किरदार को निभाकर वे एक बार फिर से साबित करने वाली हैं कि चाहे बॉलीवुड हो या हॉलीवुड, उनके अंदर अभिनय की गहराई और सशक्त किरदारों को निभाने की क्षमता है।
प्रियंका का प्रभाव: महिलाओं के लिए प्रेरणा
प्रियंका चोपड़ा का बॉलीवुड और हॉलीवुड का सफर किसी भी महिला के लिए एक प्रेरणा है। वे न केवल खुद को साबित करने में सफल रही हैं, बल्कि उन्होंने अन्य महिलाओं के लिए एक रास्ता भी खोला है। उन्होंने अपने संघर्षों और मेहनत से यह दिखाया है कि महिलाओं को भी स्वतंत्र रूप से अपने करियर का चुनाव करने का अधिकार है, और वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के समान काम कर सकती हैं। प्रियंका का यह संघर्ष और सफलता का सफर उनके लिए “ग्लोबल आइकॉन” का दर्जा ही नहीं बल्कि प्रेरणा का प्रतीक बनाता है।
प्रियंका ने अपने अनुभवों से यह सिखाया है कि समाज में महिलाओं को केवल उनकी वेशभूषा और बाहरी रूप से जज करना गलत है। महिलाओं को भी अपने सपनों को पूरा करने का अधिकार है, चाहे वे जिस भी क्षेत्र में हों। प्रियंका का यह बयान कि “काश मैं लड़का होती,” आज भी बॉलीवुड और समाज के उन पहलुओं पर सवाल उठाता है, जहां महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता।
प्रियंका चोपड़ा का यह सफर किसी परी-कथा से कम नहीं है। भारतीय सिनेमा में अपनी पहचान बनाने के बाद, उन्होंने दुनिया भर में खुद को साबित किया है। उनका यह सफर बताता है कि समाज में महिलाएं चाहे कितनी भी चुनौतियों का सामना करें, वे अपने हौसले और आत्मविश्वास से हर कठिनाई को पार कर सकती हैं। बॉलीवुड का काला सच यह है कि यहां महिला कलाकारों के लिए पुरुषों की तुलना में कठिनाईयां अधिक होती हैं, लेकिन प्रियंका ने यह दिखा दिया है कि कड़ी मेहनत और जुनून से सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है।
आज प्रियंका चोपड़ा सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं हैं; वे एक प्रेरणा हैं, एक ग्लोबल आइकॉन हैं, और उन लाखों महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहती हैं। चाहे वे बॉलीवुड में संघर्ष कर रही एक युवा अभिनेत्री हो, या हॉलीवुड में अपने पैरों पर खड़ी एक मजबूत महिला – प्रियंका ने यह दिखाया है कि अगर आपके पास हिम्मत और आत्मविश्वास है, तो आप किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं।