नो कॉस्ट ईएमआई: क्या है और कैसे कंपनियां करती हैं इसका इस्तेमाल?

0

फेस्टिव सीजन के दौरान, जब ई-कॉमर्स कंपनियां और रिटेल स्टोर अपने प्रोडक्ट्स पर आकर्षक ऑफर प्रस्तुत करते हैं, तब एक शब्द अक्सर सुनने को मिलता है: “नो कॉस्ट ईएमआई”। यह सुविधा कई ग्राहकों के लिए खरीदारी को और भी सस्ता और आसान बनाती है। लेकिन क्या वास्तव में “नो कॉस्ट ईएमआई” का मतलब है? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

नो कॉस्ट ईएमआई का मूल अर्थ

नो कॉस्ट ईएमआई या जीरो कॉस्ट ईएमआई का अर्थ है कि यदि आपने किसी प्रोडक्ट को क्रेडिट पर खरीदा है, तो आपको उस पर कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं चुकाना होगा। आप केवल उस सामान की वास्तविक कीमत की किस्तों में भुगतान करते हैं। यह सुनने में बहुत आकर्षक लगता है, लेकिन वास्तव में इसका अर्थ क्या है, यह समझना महत्वपूर्ण है।

नो कॉस्ट ईएमआई: क्या है और कैसे कंपनियां करती हैं इसका इस्तेमाल?
https://thenationtimes.in/wp-content/uploads/2024/10/image-852.png

बाजार का वास्तविक सच

जब हम “नो कॉस्ट ईएमआई” के बारे में बात करते हैं, तो यह ध्यान में रखना चाहिए कि बाजार में कुछ भी मुफ्त नहीं होता। नो कॉस्ट ईएमआई का एक कटु सच यह है कि कंपनियां इसे एक मार्केटिंग स्ट्रैटेजी के रूप में उपयोग करती हैं। यह सुविधा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए एक चाल है, जिसमें ब्याज की राशि आमतौर पर सामान की कीमत में छिपी होती है।

उदाहरण के लिए, मान लें कि आप एक मोबाइल फोन खरीद रहे हैं जिसकी कीमत 20,000 रुपये है। यदि आप नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प चुनते हैं, तो आपको ऐसा महसूस होगा कि आप केवल 20,000 रुपये ही चुका रहे हैं। लेकिन असल में, मोबाइल की कीमत पर पहले से ही एक डिस्काउंट लिया गया होगा। संभव है कि स्टोर ने उस मोबाइल को 15,000 या 16,000 रुपये में खरीदा हो, और इस तरह वह आपको इस मूल्य पर बेचकर घाटे में नहीं जाता है।

कंपनियों की मार्केटिंग रणनीतियां

कंपनियां अक्सर अपने प्रोडक्ट्स पर अच्छे खासे डिस्काउंट पहले से ले लेती हैं ताकि वे नो कॉस्ट ईएमआई का ऑफर दे सकें। इस प्रकार, वे ग्राहकों को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे कोई अतिरिक्त चार्ज नहीं चुका रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह होती है कि छिपे हुए खर्चों को सामान की कीमत में समाहित कर लिया गया है।

क्रेडिट कार्ड और नो कॉस्ट ईएमआई की प्रक्रिया

जब आप अपने क्रेडिट कार्ड का उपयोग कर नो कॉस्ट ईएमआई पर सामान खरीदते हैं, तो आपकी क्रेडिट लिमिट में समान राशि की कमी हो जाती है। उदाहरण के लिए, यदि आपने 18,000 रुपये में एक टीवी खरीदी है और इसे 6 महीने की नो कॉस्ट ईएमआई में बांटा है, तो आपकी क्रेडिट लिमिट पहले 50,000 रुपये थी, वह अब 32,000 रुपये रह जाएगी। हर ईएमआई चुकाने के बाद, आपकी क्रेडिट लिमिट धीरे-धीरे बढ़ती जाएगी।

image 854

नो कॉस्ट ईएमआई के फायदे और नुकसान

  1. फायदे:
    • अतिरिक्त ब्याज से मुक्ति: नो कॉस्ट ईएमआई का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको मूलधन पर कोई ब्याज नहीं चुकाना होता।
    • खरीदारी की सुविधा: आप महंगे प्रोडक्ट्स को आसान किस्तों में खरीद सकते हैं।
  2. नुकसान:
    • छिपे हुए खर्च: अक्सर, प्रोडक्ट की कीमत में पहले से ही ब्याज की राशि समाहित होती है, जिससे ग्राहक को यह आभास होता है कि वह मुफ्त में खरीदारी कर रहा है।
    • क्रेडिट लिमिट की कमी: हर ईएमआई के साथ आपकी क्रेडिट लिमिट कम होती जाती है, जिससे भविष्य में अन्य खर्चों के लिए आपको सीमितता का सामना करना पड़ सकता है।
image 855

क्या आपको नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प चुनना चाहिए?

जब आप नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प चुनने पर विचार कर रहे हों, तो ध्यान रखें कि यह एक संपूर्ण वित्तीय योजना का हिस्सा होना चाहिए। यह जानना आवश्यक है कि आप जो प्रोडक्ट खरीद रहे हैं, उसकी असली कीमत क्या है, और क्या वह वास्तव में आपकी जरूरतों के अनुसार सही है।

साथ ही, यह भी सुनिश्चित करें कि आप अपनी क्रेडिट लिमिट का सही प्रबंधन कर रहे हैं, ताकि आपको भविष्य में वित्तीय चुनौतियों का सामना न करना पड़े।

नो कॉस्ट ईएमआई एक सुविधाजनक विकल्प हो सकता है, लेकिन इसके पीछे की वास्तविकता को समझना भी जरूरी है। कंपनियों का यह खेल न केवल ग्राहकों को लुभाने का एक तरीका है, बल्कि यह उपभोक्ताओं को वित्तीय रूप से जागरूक करने का भी एक अवसर है।

इसलिए, अगली बार जब आप नो कॉस्ट ईएमआई का प्रस्ताव देखें, तो सतर्क रहें और अपने फैसलों में सावधानी बरतें। याद रखें, समझदारी से किया गया खर्च ही वास्तव में लाभकारी होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here