दिवाली का पर्व, जिसे “प्रकाश का त्योहार” भी कहा जाता है, भारत में हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। दिवाली का महत्व केवल घरों में रोशनी और सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि इस पर्व में धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक भावनाएं भी निहित होती हैं। इस दिन के सभी अनुष्ठानों का गहरा महत्व है। एक प्रमुख अनुष्ठान है दीपमालिका में एक बड़ा दीया जलाना, जो पूरे पर्व में एक विशेष स्थान रखता है।
दिवाली और दीपक का महत्व
दिवाली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का सबसे अंधकारमय समय होता है। मान्यता है कि इस दिन दीप जलाने से न केवल घर का अंधकार दूर होता है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। दीपों की रोशनी के साथ, लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है, जिससे जीवन में समृद्धि और सुख-शांति का आगमन होता है।
दीपक जलाने की परंपरा केवल धार्मिक मान्यता नहीं है; वास्तु शास्त्र में भी दीपक का महत्व समझाया गया है। माना जाता है कि दीपावली की रात में दीपक जलाने से घर का वातावरण पवित्र और सकारात्मक बनता है, और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इस दिन विशेष रूप से दीपमालिका सजाई जाती है जिसमें छोटे-छोटे दीपों के बीच एक बड़ा दीया जलाया जाता है। यह बड़ा दीया न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका एक ज्योतिषीय और पौराणिक आधार भी है।
दीपमालिका में बड़ा दीया क्यों जलाया जाता है?
दीपमालिका में एक बड़ा दीया जलाने की परंपरा का संबंध पितरों से है। ज्योतिषाचार्य और वास्तु विशेषज्ञ राकेश चतुर्वेदी के अनुसार, यह दीया सरसों के तेल से जलाया जाता है, जो पितृ पूजन और शनि से जुड़ा हुआ है। दिवाली की अमावस्या को पितृ गण विशेष रूप से घर में आते हैं और अपने वंशजों के जीवन में सुख-समृद्धि देखने का आशीर्वाद देते हैं। बड़ा दीया जलाना उनके सम्मान में होता है ताकि वे भी हमारे घर में रोशनी का आनंद ले सकें।
सरसों के तेल से बना यह बड़ा दीया अंधकार को दूर करने का प्रतीक है, और यह अमावस्या के समय रातभर जलता रहता है। अमावस्या का समय अंधकार और नेगेटिविटी का प्रतीक माना जाता है, और यह दीया उस अंधकार को दूर कर सकारात्मकता और शांति लाने का प्रयास करता है। दीपमालिका का यह दीया इस आशा का प्रतीक है कि हमारे पूर्वज हमारी खुशियों में शामिल होकर हमें आशीर्वाद देंगे।
सरसों के तेल का महत्व
सरसों के तेल का प्रयोग मुख्य रूप से शनि और पितृ पूजन में होता है। दिवाली की रात को सरसों के तेल का यह बड़ा दीया शनि और पितरों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। सरसों का तेल विशेष रूप से पितृ दोष और शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने में सहायक माना जाता है। यह दीया न केवल हमारे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि हमारे जीवन से नेगेटिव ऊर्जा और बाधाओं को दूर करने का भी प्रतीक है। सरसों का तेल का प्रयोग इस बात को सुनिश्चित करता है कि इस दीपमालिका का बड़ा दीया लंबे समय तक जलता रहे और उसकी लौ में सकारात्मकता का प्रवाह हो।
काजल का महत्व
इस बड़े दीए से लोग काजल भी बनाते हैं। माना जाता है कि इस काजल का प्रयोग करने से नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा होती है। दिवाली के दिन इस काजल का प्रयोग बच्चों और बड़ों दोनों पर किया जाता है, जिससे उन्हें बुरी नजर से बचाया जा सके। यह काजल एक तरह से जीवन में सकारात्मकता और सुरक्षा लाने का भी प्रतीक है।
दिवाली की पूजा में बड़ा दीया का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष के अनुसार, दिवाली की रात को अमावस्या तिथि होती है, जो सूर्य और चंद्रमा दोनों की ऊर्जा को सबसे कमजोर स्थिति में लाती है। इस समय दिया जलाने से हम इस ऊर्जा को स्थिर करने का प्रयास करते हैं। बड़ा दीया सूर्य और चंद्रमा के बीच संतुलन स्थापित करता है और घर में समृद्धि और खुशहाली का मार्ग प्रशस्त करता है।
पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का पहला दिन धनतेरस होता है और इस दिन धन और वैभव के देवता कुबेर की पूजा होती है। कुबेर देवता के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए और उनके आशीर्वाद से घर में समृद्धि बनाए रखने के लिए, दीपावली के बड़े दीए का विशेष महत्व होता है। यह दीया हमारी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने और संपन्नता की ओर बढ़ने का संकेत देता है।
दीवाली की रात को बड़ा दीया जलाने के अन्य लाभ
दीवाली पर जलाए जाने वाला बड़ा दीया न केवल धार्मिक बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। सरसों के तेल से बने दीए से उठने वाली सुगंध और धुआं वातावरण को शुद्ध करता है। यह हवा में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं और कीटों को समाप्त करने में सहायक है, जिससे घर में स्वास्थ्यवर्धक माहौल बना रहता है। इसके अलावा, सरसों के तेल की महक मानसिक शांति और सकारात्मकता को बढ़ावा देती है।
बड़ा दीया जलाने के लिए सही दिशा और स्थान का चयन
वास्तु शास्त्र में दिशा और स्थान का बहुत महत्व होता है। दीपावली के बड़े दीए को दक्षिण दिशा में जलाने का प्रावधान है। माना जाता है कि दक्षिण दिशा पितरों की दिशा होती है और वहां बड़ा दीया जलाने से वे प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही घर के मंदिर में एक दीया जलाकर रखना भी महत्वपूर्ण है, जिससे सभी दिशाओं में सकारात्मकता फैले और देवी लक्ष्मी का प्रवेश हमारे घर में सुगमता से हो सके।
बड़ा दीया और दीपमालिका का हमारे जीवन में प्रतीकात्मक महत्व
दीवाली का पर्व हमें याद दिलाता है कि जैसे अंधकार को रोशनी से दूर किया जा सकता है, वैसे ही जीवन के कठिन समय में सकारात्मकता और धैर्य से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। दीपमालिका का बड़ा दीया हमें यह संदेश देता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, हम अपने परिश्रम, धैर्य और पूर्वजों के आशीर्वाद से उस अंधकार को दूर कर सकते हैं।
दीपमालिका में बड़ा दीया जलाने की परंपरा दिवाली की रोशनी को केवल भौतिक स्तर पर ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से भी गहरा अर्थ देती है। यह हमारे जीवन में समृद्धि, शांति, और सकारात्मकता लाने का प्रतीक है। बड़ा दीया हमारे पितरों के प्रति सम्मान का प्रतीक है और यह हमें यह अहसास कराता है कि वे हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं, जो हमारे हर प्रयास में हमारे साथ हैं।