दशहरा में महंगाई का तांडव: रावण के पुतले बनाने वाले कारीगरों की मुश्किलें

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दशहरा, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन रावण के विशाल पुतले जलाए जाते हैं, जो न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि एक उत्सव भी है। लेकिन इस वर्ष, दिल्ली के तातारपुर इलाके में, दशहरा का जश्न महंगाई और प्रतिबंधों की छाया में सिमट गया है। कारीगरों की मेहनत का कोई मोल नहीं रह गया है, और पटाखों पर लगे प्रतिबंध ने उत्सव की रौनक को प्रभावित किया है।

रावण पुतला बाजार का परिचय

तातारपुर का रावण पुतला बाजार एशिया के सबसे बड़े रावण पुतला बाजारों में से एक है। यहां के कारीगर दिन-रात मेहनत कर रावण के विशाल पुतले तैयार करते हैं। पुतले 5 फुट से लेकर 60 फीट तक के आकार में बनते हैं और पहले इनका निर्यात भी होता था। लेकिन इस बार, बाजार में मांग काफी कम है। कारीगरों की मेहनत और कला का कोई मूल्य नहीं रह गया है, और वे गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं।

दशहरा
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महंगाई का असर

इस वर्ष, कारीगरों का कहना है कि महंगाई ने उनके कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है। कागज, बांस, और तार जैसी सामग्रियों की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। इससे पुतले बनाने का खर्च बढ़ गया है, और मुनाफा घट रहा है। लक्ष्मी, जो पिछले 12 वर्षों से रावण के पुतले बना रही हैं, ने कहा कि कोरोना से पहले उनका काम ठीक था, और वे दिन के लगभग 1200 रुपए कमा लेती थीं। लेकिन अब उनकी आमदनी घटकर 400-500 रुपए रह गई है, जो उनके गुजारे के लिए भी पर्याप्त नहीं है।

पटाखों पर प्रतिबंध का प्रभाव

इस वर्ष, दिल्ली सरकार ने पटाखों पर प्रतिबंध लगाया है, जिसका असर रावण के पुतलों की बिक्री पर पड़ा है। कारीगरों का मानना है कि पटाखों के बिना रावण जलाने का उत्सव अधूरा होता है। रावण के जलने पर होने वाला धमाका और शोर ही इस त्योहार की आत्मा है। बिना पटाखों के, उत्सव का आनंद उठाना मुश्किल हो गया है। यह स्थिति उनकी बिक्री को प्रभावित कर रही है, जिससे उनकी चिंता बढ़ गई है।

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बिक्री में कमी के कारण

कारोबारी कहते हैं कि यदि स्थिति यही रही, तो आने वाले वर्षों में उन्हें यह काम बंद करना पड़ेगा। रावण के पुतले बनाने वाले कारीगरों की आमदनी में कमी आई है, और वे पहले की तरह उत्साह से काम नहीं कर पा रहे हैं। लक्ष्मी ने कहा कि वे कई वर्षों से पुतले 500 रुपए प्रति फुट की दर पर बेच रही हैं, लेकिन अब यह कीमत भी उनकी लागत का हिसाब नहीं दे रही है।

त्योहार का सामाजिक और आर्थिक महत्व

दशहरा न केवल धार्मिक मान्यता का प्रतीक है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कारीगर, व्यापारी, और श्रमिक इस अवसर पर अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा कमा लेते हैं। लेकिन इस वर्ष, महंगाई और प्रतिबंधों के कारण यह सब प्रभावित हुआ है। अगर इस स्थिति का समाधान नहीं निकाला गया, तो कारीगरों की इस परंपरा का समाप्त होना निश्चित है।

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संभावित समाधान

इस संकट से उबरने के लिए कारीगरों और व्यापारियों को मिलकर कुछ समाधान निकालने होंगे। सरकार को भी चाहिए कि वह कारीगरों के लिए विशेष योजना बनाएं, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। इसके साथ ही, त्योहार के दौरान किसी तरह की राहत या सब्सिडी भी दी जा सकती है।

दशहरा का त्योहार हमारे जीवन में खुशी और उत्साह का प्रतीक है, लेकिन इस वर्ष महंगाई और प्रतिबंधों ने इसे संकट में डाल दिया है। रावण के पुतले बनाने वाले कारीगरों की मेहनत का कोई मोल नहीं रह गया है। यह न केवल उनके लिए बल्कि पूरे समाज के लिए चिंता का विषय है। अगर जल्द ही इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो हम इस समृद्ध परंपरा को खो देंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस त्यौहार की रौनक और कारीगरों की मेहनत का मूल्य बना रहे, ताकि दशहरा हमेशा की तरह हमारे जीवन में खुशियाँ लेकर आए।

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