सारा खेल दिल और दिमाग का है। जिन्होंने दिल की सुनी, वे आशिक हो गये और जिन्होंने दिमाग की सुनी, वे वैज्ञानिक हो गये। दोनों ही दुनिया को हसीन बनाने के लिये आवश्यक तत्व हैं। प्यार के बिना दुनिया बेअर्थ व बदरंग है और वैज्ञानिक सुविधाओं ने जीवन को बेइंतहा सुविधाजनक बनाया है। आशिकों के बिना तो मानवता का फिर भी काम चल जाता पर वैज्ञानिकों के बिना मानवता का उद्धार असंभव था। आज पूरी दुनिया एक दमदार दिमागी वैज्ञानिक की पलकें बिछाये राह देख रही है जो कोरोना की गोली-टीका ढूंढ कर हमारी हथेली पर रख दे। फिलहाल तो हजारों दिमाग इस खोज में रात-दिन जुटे हैं।
हर बच्चे ने अपनी मां से एक वाक्य जरूर सुना होगा कि परे हट, दिमाग न खा। धरती पर हजारों-हजार वस्तुयें खाने की हैं, उनमें दिमाग कब से शामिल हो गया, कहा नहीं जा सकता। दिमाग के बारे में कहा जाता है कि जब सारा जिस्म सो जाता है तब भी दिमाग काम करता है। फिर भी दो ऐसी स्थितियां हैं जब दिमाग काम करना बन्द-सा कर देता है। एक तो परीक्षा भवन में प्रश्नपत्र देखकर और दूसरा उस ‘खास’ को देखकर, जिसे देखते ही धड़कन तेज़ हो जाती है। शरीर के सारे अंग जहां होते हैं, ज़िंदगी भर वहीं रहते हैं पर दिमाग के बारे में कहा जाता है कि फलां का दिमाग सेंटर में नहीं है। या यह भी कहा जाता है कि फलां का दिमाग हिल गया लगता है।
चुनावों में तो लोग हाथ में गंगाजल लेकर कसमें उठा लेते हैं कि इस बार अमुक नेता का दिमाग ठीक नहीं कर दिया तो मेरा नाम भी…। कुछ लोगों का इस जीवन का ध्येय इतना सा ही है कि फलां का दिमाग ठिकाने लगाना था। भावावेश में आकर वे एकाध पल में अपने दिमाग का बैलेंस इतना खो बैठते हैं कि अपनी दुनिया ही नष्ट कर लेते हैं। दुनिया में दिमाग ही ऐसी चीज़ है जिसे खाया, चाटा, खराब, गर्म-ठंडा किया जा सकता है। यही नहीं, इसमें गोबर व भूसा भी भरा हो सकता है। यह भी जरूरी नहीं है कि कीड़ा सिर्फ दांत में ही हो, दिमाग का कीड़ा और भी खतरनाक होता है।
रेत में गिरी चीनी चींटी तो उठा सकती है पर हाथी नहीं। बस यही हुनर अपने-अपने दिमाग पर निर्भर करता है। रेशम के कीड़े रेशम बनाते हैं, मधुमक्खियां शहद बनाती हैं और सिरफिरे बम और मिसाइल बनाते हैं।
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एक बर की बात है अक नत्थू नैं अपनी नयी ब्यावली बन्नो तै समझाते होये कहा—देखै पति का दिमाग चाटण तैं भी करवा चौथ का व्रत टूटण का डर है।