फरहान , बॉलीवुड के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में से एक, जावेद अख्तर, जिन्होंने अपने समय में ब्लॉकबस्टर फिल्में दी हैं, एक ऐसा नाम हैं जिन्हें न केवल लेखन बल्कि गीतों में भी महारत हासिल है। उनकी फिल्में जैसे ‘दीवार’, ‘शोले’, ‘जंजीर’, ‘सीता और गीता’ जैसी कालजयी फिल्मों में उनकी लेखनी की शक्ति झलकती है। आज के समय में भी जावेद अख्तर का नाम भारतीय सिनेमा में गहरे सम्मान के साथ लिया जाता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उनके खुद के बच्चों, फरहान अख्तर और जोया अख्तर, जो खुद बॉलीवुड के जाने-माने डायरेक्टर हैं, को अपने पिता की लेखन शैली को लेकर कई बार संदेह हुआ है।
जावेद अख्तर का यह बयान काफी हैरान करने वाला है कि उनके बच्चों को उन पर उतना भरोसा नहीं है, जितना दर्शकों और इंडस्ट्री के अन्य लोगों को है। हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान, जावेद अख्तर ने यह खुलासा किया कि फरहान और जोया ने कई बार उनके डायलॉग्स को रिजेक्ट कर दिया और उन्हें “आउटडेटेड” कहा।
फरहान और जोया को क्यों लगता है कि जावेद अख्तर ‘आउटडेटेड’ हैं?
जावेद अख्तर ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके बच्चे, फरहान और जोया, उन्हें “ओल्ड फैशन” मानते हैं। वे मानते हैं कि उनके पापा की लेखन शैली आज की पीढ़ी के लिए नहीं है। जावेद अख्तर कहते हैं, “मेरे बच्चों की पहली भाषा अंग्रेजी है, और वे उसी में सोचते और सपने देखते हैं। जबकि मैं उर्दू और हिंदी की दुनिया से आता हूं। मुझे इन भाषाओं का ज्ञान उनसे बेहतर है, लेकिन फिर भी वे मुझे ट्रेडिशनल और आउटडेटेड कहते हैं।”
फरहान और जोया दोनों के लिए, जावेद अख्तर का लेखन एक अलग पीढ़ी का प्रतीक है, और शायद इसीलिए वे उनकी शैली को अपनी फिल्मों में फिट नहीं मानते। फरहान अख्तर, जो खुद एक निर्देशक, लेखक और अभिनेता हैं, ने अपने पिता के साथ ‘लक्ष्य’ के लिए काम किया था, जो एकमात्र फिल्म थी जिसके लिए जावेद अख्तर ने पिछले 25 सालों में उनके लिए स्क्रिप्ट लिखी थी।
फरहान और जावेद अख्तर का रिश्ता: आलोचना या सम्मान?
फरहान अख्तर का अपने पिता से संवाद न केवल उनके पेशेवर संबंधों का हिस्सा है, बल्कि उनकी व्यक्तिगत समीक्षाओं का भी प्रतिबिंब है। फरहान का कहना है कि वह जावेद अख्तर के डायलॉग्स पर लड़ाई नहीं करते, बल्कि उन्हें सीधे रिजेक्ट कर देते हैं। यह बताता है कि भले ही वे अपने पिता की प्रतिष्ठा का सम्मान करते हैं, लेकिन वे अपनी फिल्मों के लिए एक नई, ताजा और आधुनिक दृष्टिकोण को प्राथमिकता देते हैं।
यह रिश्ता केवल आलोचना तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सम्मान और आपसी समझ भी है। जावेद अख्तर खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि फरहान के साथ काम करना एक चुनौती है क्योंकि वे दोनों अलग-अलग दुनिया से आते हैं। लेकिन उन्होंने कभी इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया, बल्कि इसे एक पेशेवर दृष्टिकोण से देखा।
जोया अख्तर और जावेद अख्तर: संघर्ष और संवाद
जोया अख्तर, जिन्होंने अपनी फिल्मों में नई सोच और अनूठी दृष्टि पेश की है, भी अपने पिता के डायलॉग्स को लेकर आलोचनात्मक रही हैं। जावेद अख्तर ने खुलासा किया कि जोया उनके साथ बहस करती हैं और अपने किरदारों के लिए उनके डायलॉग्स को नहीं मानती।
जोया की पहली फिल्म ‘लक बाय चांस’ में जावेद अख्तर ने कुछ संवाद लिखे थे, लेकिन इसके बाद जोया ने अपने पिता को दोबारा कभी संवाद लिखने का मौका नहीं दिया। यह दिखाता है कि जोया ने अपने करियर की शुरुआत में अपने पिता की मदद ली, लेकिन जैसे-जैसे वह अपनी खुद की पहचान बना रही थीं, उन्होंने अपनी फिल्मों में अपने खुद के दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी।
जब जावेद अख्तर को कुत्ते के लिए लिखने का मौका मिला: एक अनोखी कहानी
जावेद अख्तर के बच्चों के साथ उनके रचनात्मक संबंधों का सबसे दिलचस्प और हास्यप्रद पहलू तब सामने आया जब जोया अख्तर ने उन्हें अपनी फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ के लिए संवाद लिखने का मौका दिया। लेकिन यहां भी, जोया ने अपने पिता से किसी इंसानी किरदार के लिए नहीं, बल्कि एक कुत्ते के लिए संवाद लिखवाए।
फिल्म में कुत्ते का किरदार पारिवारिक भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है, और जोया ने महसूस किया कि इस किरदार की गहराई को जावेद अख्तर से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। इस प्रकार, जावेद अख्तर को फिल्म में केवल कुत्ते के डायलॉग्स लिखने के लिए कहा गया। यह कहानी न केवल मजेदार है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे एक पिता और बच्चों के बीच का रचनात्मक संबंध एक अलग स्तर पर काम करता है।
जावेद अख्तर का आत्मविश्लेषण: एक दिग्गज लेखक का नज़रिया
जावेद अख्तर, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी लेखनी से एक अमिट छाप छोड़ी है, खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि समय के साथ चीजें बदलती हैं। वे मानते हैं कि हर पीढ़ी की अपनी भाषा, अपनी सोच होती है, और शायद यही वजह है कि उनके बच्चे उन्हें ‘आउटडेटेड’ मानते हैं। लेकिन इसके बावजूद, जावेद अख्तर का लेखन आज भी गहरा और अर्थपूर्ण है, जो कि उनकी कविताओं और गीतों में झलकता है।
उन्होंने अपने बच्चों के साथ इस रिश्ते को सहजता से लिया है। उनके लिए यह कोई असफलता नहीं है, बल्कि एक नई दृष्टिकोण को स्वीकार करने की बात है। वे कहते हैं, “हर पीढ़ी को अपनी राह खुद चुनने का अधिकार होता है। मेरे बच्चे भी अपनी राह पर हैं, और मुझे उन पर गर्व है।”
निष्कर्ष: पिता और बच्चों के बीच का अनूठा रचनात्मक संतुलन
जावेद अख्तर और उनके बच्चों, फरहान और जोया अख्तर, के बीच का रिश्ता केवल एक पारिवारिक बंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक रचनात्मक संघर्ष और समझ का भी उदाहरण है। जावेद अख्तर, जो भारतीय सिनेमा के महानतम लेखकों में से एक हैं, अपने बच्चों के साथ इस यात्रा को एक नए दृष्टिकोण से देख रहे हैं।
यह संबंध न केवल पारिवारिक प्रेम और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे हर पीढ़ी अपने खुद के विचारों और सपनों के साथ आगे बढ़ती है। फरहान और जोया अपने पिता की छाया में नहीं, बल्कि अपनी खुद की पहचान बनाना चाहते हैं, और जावेद अख्तर इस प्रक्रिया में उनका समर्थन कर रहे हैं।
जावेद अख्तर का यह कहना कि उन्हें सिर्फ कुत्ते के डायलॉग्स लिखने के लिए कहा गया, एक हास्यप्रद स्थिति हो सकती है, लेकिन यह भी दर्शाता है कि एक सच्चे कलाकार के लिए किसी भी प्रकार का योगदान महत्वपूर्ण होता है। चाहे वह इंसानी किरदार हो या कुत्ते का, जावेद अख्तर की लेखनी हमेशा अपनी छाप छोड़ती है।