छठ पूजा की महिमा को समझने के लिए हमें बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर की ओर रुख करना चाहिए। इस पावन स्थान पर सूर्य देवता त्रिदेव के रूप में विराजमान हैं, जिन्हें देवताओं की माता अदिति ने स्थापित किया था। यहां का छठ पर्व भारत के सबसे बड़े महापर्वों में से एक है, और इस पर्व के दौरान हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान सूर्य को अर्घ्य देने आते हैं। यह स्थान न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था, परंपरा, और श्रद्धा का प्रतीक है। यहां देव सूर्य मंदिर और छठ पूजा के महत्व को विस्तार से जानें।
देव सूर्य मंदिर: त्रिदेव स्वरूप सूर्य का अनोखा मंदिर
बिहार के औरंगाबाद जिले के देव गांव में स्थित यह सूर्य मंदिर भारतीय मंदिर स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना है। इसके निर्माण का काल अस्पष्ट है, लेकिन पुरातत्वविदों का मानना है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। देव सूर्य मंदिर एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान सूर्य त्रिदेव स्वरूप में स्थापित हैं। इस मंदिर में भगवान सूर्य के तीन स्वरूप हैं – भगवान विष्णु, भगवान शिव, और भगवान ब्रह्मा। मान्यता है कि देवताओं की माता अदिति ने यहां स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया था, और उनके आशीर्वाद से भगवान सूर्य त्रिदेव रूप में प्रकट हुए थे। इस अनोखे त्रिदेव स्वरूप की स्थापना अदिति ने स्वयं इस मंदिर के गर्भगृह में की थी।
यहां आने वाले श्रद्धालु इस विशेष स्वरूप में भगवान सूर्य के दर्शन करते हैं और अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का विश्वास लेकर आते हैं। विशेषकर, संतान सुख प्राप्ति के लिए यहां स्नान कर अर्घ्य देना अत्यधिक फलदायी माना जाता है।
छठ पूजा का आयोजन और महत्व
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य की उपासना का पर्व है जो चार दिनों तक चलता है। यह पर्व दीपावली के ठीक छह दिनों बाद कार्तिक माह में मनाया जाता है। देव सूर्य मंदिर में इस महापर्व का आयोजन अत्यंत भव्यता से किया जाता है। यहां लाखों श्रद्धालु पवित्र कुंड में स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देने आते हैं। इस पूजा में व्रती भक्तजन सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य देकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
छठ पर्व के इस महापर्व का आयोजन औरंगाबाद जिले का प्रमुख आकर्षण है। यहाँ का छठ मेला लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ आकर्षित करता है। इसे एक राजकीय मेले का दर्जा भी मिला है, जिसमें सरकारी और स्थानीय प्रशासन व्यवस्था पूरी तरह से श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए तत्पर रहता है।
आस्था और मान्यताओं का अनूठा संगम
छठ पूजा केवल पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए यह आस्था का जीवंत प्रमाण है। माना जाता है कि यहां आकर जो व्यक्ति मनोकामना मांगता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर इस कुंड में स्नान करने से अनेक लोगों को संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।
यह भी माना जाता है कि सूर्य देव अपने सभी भक्तों के कष्टों का निवारण करते हैं। छठ पूजा के दौरान व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखकर संतान, परिवार, और समाज की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। चार दिनों तक चलने वाली इस पूजा में व्रती कड़ी तपस्या करते हैं, जिसमें खान-पान में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। पर्व के अंत में उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन किया जाता है।
धार्मिक पर्यटन का केंद्र: देव छठ मेला
देव छठ मेला न केवल बिहार, बल्कि देश-विदेश के लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। देव छठ मेला एक प्रकार का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेलजोल है, जहां श्रद्धालु अपनी आस्था और परंपरा को जीते हैं। इस मेले का राजकीय दर्जा मिलने के बाद से यहां की सुरक्षा व्यवस्था और सुविधा में बढ़ोतरी हुई है। जिला प्रशासन इस मेले को सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए महीनों पहले तैयारियों में जुट जाता है।
मेले के दौरान यातायात और सुरक्षा व्यवस्था में खास ध्यान रखा जाता है ताकि लाखों श्रद्धालु बिना किसी बाधा के इस पर्व में सम्मिलित हो सकें। खासकर संध्या और प्रातःकाल के समय जब भक्तजन अर्घ्य देने के लिए एकत्रित होते हैं, तब प्रशासन की जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ जाती है।
छठ पर्व का सांस्कृतिक महत्व
छठ पर्व में लोकगीतों, परंपरागत परिधानों और रीति-रिवाजों की भी खास अहमियत है। छठी मैया की महिमा के गीत गाकर श्रद्धालु एक खास सांस्कृतिक माहौल का निर्माण करते हैं। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में इस पर्व को मनाती हैं और अपने हाथों में टोकरी में ठेकुआ, फल, और अन्य प्रसाद लेकर भगवान सूर्य को अर्पित करती हैं।
छठ पर्व का प्रत्येक गीत, पूजा विधि, और अनुष्ठान भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को मजबूती देता है, बल्कि समाज में एकता और सद्भाव का संदेश भी देता है।
आध्यात्मिकता और पर्यावरण का जुड़ाव
छठ पर्व में पवित्र नदियों, तालाबों, और कुंडों के तटों पर अर्घ्य दिया जाता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है। इस पर्व में प्रकृति के सभी तत्व – सूर्य, जल, और पृथ्वी का सम्मान किया जाता है। यहां के भक्तगण नदियों की स्वच्छता का खास ख्याल रखते हैं और छठ पूजा के माध्यम से प्रकृति से जुड़े रहने का संदेश देते हैं।
देव सूर्य मंदिर और छठ पूजा का यह महापर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। देव सूर्य मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु आकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी आस्था को प्रकट करते हैं। इस पर्व में सामूहिकता, एकता, और संपूर्ण मानवता की भलाई की भावना देखने को मिलती है।
छठ पर्व, विशेषकर देव सूर्य मंदिर में आयोजित यह महापर्व, भारतीय संस्कृति की महान धरोहर है, जो परंपराओं के संरक्षण, प्रकृति से प्रेम, और मानवता के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
छठ पूजा: बिहार के औरंगाबाद में देव सूर्य मंदिर की पवित्र यात्राhttp://छठ पूजा: बिहार के औरंगाबाद में देव सूर्य मंदिर की पवित्र यात्रा