गोवर्धन पूजा: प्रकृति, प्रेम और समर्पण का पर्व

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भारत की सांस्कृतिक धरोहर में दीपावली के साथ गोवर्धन पूजा का अपना विशेष स्थान है। दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव के अंतर्गत आने वाला यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है और भारतीय समाज में सामूहिकता, प्रेम और समर्पण का संदेश देता है। गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इस पूजा की शुरुआत ब्रजवासियों की सुरक्षा के लिए की थी और तब से यह परंपरा भारत में जारी है।

आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा के इतिहास, धार्मिक मान्यता और इस दिन अन्नकूट का भोग लगाने के पीछे के अद्भुत महत्व को।

गोवर्धन पूजा: प्रकृति, प्रेम और समर्पण का पर्व
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गोवर्धन पूजा का पौराणिक इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल में ब्रज के लोग हर वर्ष इंद्र देवता की पूजा करते थे ताकि इंद्र देवता प्रसन्न होकर उन्हें वर्षा का आशीर्वाद दें और उनकी फसलों को अच्छा उत्पादन मिले। लेकिन एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को यह पूजा छोड़ने का सुझाव दिया और इसके स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का प्रस्ताव रखा। उनका तर्क था कि गोवर्धन पर्वत और उसके आसपास की प्राकृतिक संपदाएं उन्हें खाद्य, जल और जीवन देती हैं, अतः इनकी पूजा करना अधिक महत्वपूर्ण है।

श्रीकृष्ण के इस निर्णय से नाराज होकर इंद्र ने मूसलधार वर्षा करके ब्रजवासियों को दंडित करने का निश्चय किया। इंद्र के इस प्रकोप से बचने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया, जिसके नीचे ब्रजवासी और उनके पशु सुरक्षित रहे। इस प्रकार सात दिनों तक लगातार वर्षा होती रही, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से सभी सुरक्षित रहे। तब से ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत को पूजनीय मानकर इसकी पूजा करना शुरू कर दिया।

गोवर्धन पूजा का धार्मिक महत्व

गोवर्धन पूजा का धार्मिक महत्व सिर्फ इंद्र के क्रोध से मुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूजा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का भी प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में पर्वत, नदियाँ, वृक्ष, और भूमि का विशेष स्थान है। गोवर्धन पूजा इसी परंपरा का एक हिस्सा है। इसके द्वारा यह संदेश दिया जाता है कि मनुष्य को प्रकृति का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि प्रकृति ही जीवन के सभी स्रोतों की जननी है।

यह पर्व हमें याद दिलाता है कि धरती पर जल, अन्न, हवा और जीवन के अन्य साधनों की प्राप्ति केवल प्रकृति की कृपा से होती है। इसलिए हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह प्रकृति का सम्मान करे और इसके प्रति आभार प्रकट करे।

अन्नकूट का भोग: प्रेम और समर्पण का प्रतीक

गोवर्धन पूजा के दिन विशेष रूप से अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। अन्नकूट का अर्थ है “अन्न का पहाड़।” इस दिन ब्रजवासी अपने घरों में बने विभिन्न प्रकार के भोजन एकत्र करके भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करते हैं। इस भोग में चावल, दाल, सब्जियाँ, और मिठाइयों का समावेश होता है, जिसे विशेष रूप से अन्नकूट के रूप में सजाया जाता है। इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग या “छप्पन भोग” का विशेष भोग भी लगाया जाता है।

छप्पन भोग का धार्मिक महत्व यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को प्रतिदिन आठ पहर में से प्रत्येक पहर के लिए सात प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। यह भोग भगवान श्रीकृष्ण के प्रति ब्रजवासियों के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इसमें यह संदेश छिपा है कि हम भगवान को अपनी भावनाओं के साथ अर्पित किए गए भोजन के माध्यम से कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इस परंपरा के माध्यम से यह विश्वास भी जताया जाता है कि भगवान की कृपा से घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होगी।

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गोवर्धन पूजा का सामाजिक महत्व

गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसका एक सामाजिक पहलू भी है। इस दिन सभी लोग सामूहिक रूप से मिलकर भोग तैयार करते हैं, पूजा करते हैं और प्रसाद बांटते हैं। यह सामूहिक प्रयास समाज में प्रेम, सामंजस्य और एकता का भाव उत्पन्न करता है। जब लोग अपने परिवारों और मित्रों के साथ मिलकर अन्नकूट का भोग लगाते हैं, तो यह पर्व उनके बीच के संबंधों को और अधिक मजबूत बनाता है।

इस सामूहिक पूजा में एक और संदेश निहित है कि समाज में हम सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। गोवर्धन पूजा के माध्यम से यह शिक्षा मिलती है कि एकता में शक्ति है और हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए।

गोवर्धन पूजा की तैयारियाँ और परंपराएँ

इस पर्व के लिए लोग अपने घरों और मंदिरों में गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाते हैं। इसके लिए गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की छोटी उंगली से पर्वत उठाए हुए आकृति को दर्शाया जाता है। पूजा के दौरान रंगोली, दीपक और फूलों से घर और मंदिर को सजाया जाता है। इसके बाद गोवर्धन पर्वत की इस आकृति की पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

इसके साथ ही इस दिन गाय और अन्य पशुओं की भी पूजा की जाती है, क्योंकि ब्रजवासी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इन पशुओं पर निर्भर रहते हैं।

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गोवर्धन पूजा: एकता, कृतज्ञता और प्रेम का पर्व

गोवर्धन पूजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारे समाज के आदर्शों, मूल्यों और परंपराओं का भी प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि हम सबको एक साथ मिलकर प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करनी चाहिए और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। इसके साथ ही गोवर्धन पूजा समाज में सामूहिकता और प्रेम का संदेश देती है, जो हमारे समाज की रीढ़ है।

भारत जैसे देश में, जहाँ विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोग मिलकर जीवन जीते हैं, ऐसे पर्व हमारे सामाजिक ढांचे को और अधिक मजबूत बनाते हैं। गोवर्धन पूजा का उद्देश्य न केवल भगवान श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना है, बल्कि यह पर्व हमें धरती और प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों की भी याद दिलाता है।

इस पर्व के माध्यम से हम सभी के बीच एक ऐसा संबंध बनता है, जो हमें हर परिस्थिति में एक-दूसरे के साथ खड़ा रहने की प्रेरणा देता है। गोवर्धन पूजा केवल एक पूजा नहीं, बल्कि समाज में प्रेम, एकता और कृतज्ञता का उत्सव है, जो हमारी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखता है।

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