गूगल का न्यूक्लियर पावर प्लान: विज्ञान और तकनीकी की दुनिया में, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का विकास तेजी से हो रहा है, ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नए स्रोतों की तलाश एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है। इसी कड़ी में, गूगल ने एक नई दिशा में कदम बढ़ाते हुए काइरोस पावर के साथ एक महत्वाकांक्षी समझौता किया है, जिसके तहत कंपनी 2035 तक 7 एडवांस न्यूक्लियर पॉवर प्लांट स्थापित करेगी। यह समझौता न केवल ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करेगा, बल्कि नई तकनीक के माध्यम से स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।
गूगल का कदम: AI की शक्ति का समर्थन
गूगल के सीनियर डायरेक्टर फॉर एनर्जी एंड क्लाइमेट, माइकल टेरेल के अनुसार, यह समझौता एआई की पूर्ण क्षमता को उजागर करने में मदद करेगा। जैसे-जैसे एआई टेक्नोलॉजी का विकास हो रहा है, डेटा सेंटर्स के लिए बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है। ये डेटा सेंटर न केवल सिस्टम को पावर देने के लिए भारी मात्रा में बिजली की मांग करते हैं, बल्कि उपकरणों को ठंडा रखने के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस दशक के अंत तक वैश्विक डेटा सेंटर्स की ऊर्जा खपत दोगुनी होने की संभावना है। इस बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए, टेक कंपनियां न्यूक्लियर पावर को एक आकर्षक विकल्प के रूप में देख रही हैं, क्योंकि यह कार्बन मुक्त और 24/7 बिजली प्रदान करता है।
काइरोस पावर का योगदान
गूगल के साथ इस सहयोग के माध्यम से, काइरोस पावर एडवांस्ड न्यूक्लियर एनर्जी को व्यावसायिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ा रही है। काइरोस छोटे रिएक्टरों के विकास में विशेषज्ञता रखती है, जो पारंपरिक न्यूक्लियर संयंत्रों के पानी के बजाय मोल्टन फ्लोराइड साल्ट का उपयोग कूलेंट के रूप में करते हैं। यह तकनीक न केवल अधिक सुरक्षित है, बल्कि ऊर्जा उत्पादन की दक्षता को भी बढ़ाती है।
2022 में, यूएस के नियामकों ने काइरोस को एक नए प्रकार के न्यूक्लियर रिएक्टर के निर्माण के लिए परमिट दिया। जुलाई में, कंपनी ने टेनेसी में एक डेमोंस्ट्रेशन रिएक्टर के निर्माण की शुरुआत की। यह कदम टेक्नोलॉजी और बाजार की दृष्टि से एडवांस्ड न्यूक्लियर रिएक्टरों की व्यवहार्यता को साबित करने में मदद करेगा, जो पावर ग्रिड्स को डीकार्बनाइज करने के लिए बेहद आवश्यक हैं।
न्यूक्लियर ऊर्जा की वैश्विक पहल
गूगल और काइरोस पावर के बीच यह समझौता टेक इंडस्ट्री में न्यूक्लियर एनर्जी की बढ़ती स्वीकृति का हिस्सा है। पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अमेरिका ने उन देशों के समूह में शामिल होने की घोषणा की, जो 2050 तक अपनी न्यूक्लियर ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाना चाहते हैं, ताकि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम की जा सके।
इस दिशा में अन्य प्रमुख कदमों में माइक्रोसॉफ्ट का हालिया समझौता शामिल है, जिसके तहत अमेरिका के सबसे बड़े न्यूक्लियर दुर्घटना स्थल, थ्री माइल आइलैंड एनर्जी प्लांट को फिर से शुरू करने की योजना बनाई गई है। इसी साल मार्च में, अमेजन ने पेंसिल्वेनिया में एक न्यूक्लियर पावर्ड डेटा सेंटर खरीदने का ऐलान किया था।
चुनौतियां और चिंताएं
हालांकि, न्यूक्लियर ऊर्जा को लेकर चिंताएं भी बनी हुई हैं, जैसे कि इससे उत्पन्न दीर्घकालिक रेडियोएक्टिव वेस्ट की समस्या। आलोचकों का मानना है कि न्यूक्लियर पावर पूरी तरह से जोखिममुक्त नहीं है। इसके अलावा, कई देशों में न्यूक्लियर रिएक्टरों के निर्माण और संचालन के लिए कड़े नियम और विनियम हैं, जो संभावित निवेशकों के लिए बाधा बन सकते हैं।
निष्कर्ष: ऊर्जा का भविष्य
गूगल का यह कदम न केवल ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए है, बल्कि यह टेक उद्योग में स्थिरता और स्वच्छ ऊर्जा के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। एआई टेक्नोलॉजी की बढ़ती मांग और साथ ही साथ न्यूक्लियर ऊर्जा के प्रति बढ़ती स्वीकृति, यह संकेत देती है कि भविष्य में ऊर्जा उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन आने वाले हैं।
यह समझौता अन्य कंपनियों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार वे अपने ऊर्जा स्रोतों का विस्तार कर सकते हैं और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। गूगल और काइरोस का यह सहयोग न केवल आर्थिक बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थायी ऊर्जा प्रणाली स्थापित की जा सके।
इस प्रकार, गूगल की नई पहल न केवल तकनीकी विकास को बढ़ावा देगी, बल्कि दुनिया को एक स्थायी और स्वच्छ ऊर्जा भविष्य की ओर भी अग्रसर करेगी।