जब हम भारतीय करेंसी पर नजर डालते हैं, तो महात्मा गांधी का चेहरा सहज ही हमारे ध्यान को आकर्षित करता है। यह एक ऐसा प्रतीक है जो न केवल देश की पहचान का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि हमारे संघर्ष और स्वतंत्रता की कहानी भी सुनाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद, भारतीय नोटों पर गांधीजी की तस्वीर छापने का प्रस्ताव पहले ठुकरा दिया गया था? इस लेख में, हम इस रोचक इतिहास का अन्वेषण करेंगे और जानेंगे कि गांधीजी की तस्वीर अंततः किस प्रकार भारतीय मुद्रा पर आई।
स्वतंत्रता के बाद की स्थिति
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, देश को एक नए प्रतीक की आवश्यकता थी जो कि ब्रिटिश राज की उपस्थिति को समाप्त करे। शुरू में, यह समझा गया कि महात्मा गांधी की तस्वीर भारतीय करेंसी पर आने वाली है। इससे एक नए भारत का प्रतीक बनेगा। हालांकि, यह विचार स्थगित कर दिया गया। इसके स्थान पर, अशोक स्तंभ या अशोक की लाट को नोटों पर छापने का निर्णय लिया गया।
22 वर्षों की प्रतीक्षा
गांधीजी की तस्वीर पहली बार भारतीय नोट पर 1969 में आई। यह 22 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा थी। उस समय, भारतीय रिजर्व बैंक ने गांधीजी की 100वीं जयंती के अवसर पर एक रुपये का नया नोट जारी किया। इस नोट पर गांधीजी की छवि के साथ-साथ सेवाग्राम आश्रम का चित्र भी था, जो उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में से एक को दर्शाता है।
गांधीजी की तस्वीर का चयन
गांधीजी की मुद्रा पर अंकित तस्वीर वास्तव में एक मूल चित्र से ली गई थी, जो 1946 में राष्ट्रपति भवन (तब वाइसराय हाउस) के बाहर की थी। इस चित्र में गांधीजी के साथ ब्रिटिश नेता लार्ड फ्रेडरिक विलियम पैटिक लारेंस थे। यह तस्वीर उनके सरलता और मानवता के प्रति उनके समर्पण का एक प्रतीक बन गई।
भारतीय करेंसी के विकास में गांधीजी
गांधीजी की तस्वीर पहली बार 1969 में एक रुपये के नोट पर नजर आई। इसके बाद, 1987 में 500 रुपये के नोट पर भी गांधीजी की तस्वीर छापी गई। हालांकि, 1996 में रिजर्व बैंक ने गांधीजी की छवि के साथ एक नई नोट श्रृंखला जारी की, जिसमें सभी मूल्यवर्ग के नोटों पर गांधीजी का चित्र अंकित था। यह नोट न केवल उनकी छवि के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि इसमें सुरक्षा फीचर्स भी जोड़े गए थे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह जाली न हो।
गांधीजी की तस्वीर को लेकर विवाद
हाल के वर्षों में, विभिन्न समूहों ने गांधीजी की तस्वीर को हटाने की मांग की है। कई नेताओं जैसे जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, और सरदार पटेल की तस्वीरों को विकल्प के रूप में प्रस्तावित किया गया है। हालांकि, रिजर्व बैंक और सरकार ने स्पष्ट किया है कि गांधीजी के अलावा किसी अन्य शख्सियत की तस्वीर भारतीय मुद्रा पर नहीं लगाई जा सकती। यह निर्णय महात्मा गांधी की अपार गरिमा और उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए लिया गया था।
नवरात्रि और महात्मा गांधी
गांधीजी का जीवन सत्य और अहिंसा का प्रतीक है, और उनका आदर्श नवरात्रि जैसे त्योहारों में भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा के साथ, गांधीजी के सिद्धांतों को याद करने का यह सही समय है, जब हम अपने जीवन में सत्य और नैतिकता को अपनाने का प्रयास करें।
महात्मा गांधी की छवि भारतीय मुद्रा पर केवल एक तस्वीर नहीं है, बल्कि यह हमारे देश की आत्मा और हमारी स्वतंत्रता की कहानी का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि गांधीजी की विचारधारा आज भी हमारे समाज में जीवित है। उनकी तस्वीर भारतीय मुद्रा पर एक स्थायी उपस्थिति है, जो हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने आदर्शों और मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए।
गांधीजी का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी। उनकी तस्वीर भारतीय करेंसी पर न केवल उनकी महानता का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय पहचान का भी हिस्सा है। हम सभी को गर्व होना चाहिए कि हमारे नोटों पर एक ऐसा चेहरा है जो हमारे देश की मूल भावना का प्रतिनिधित्व करता है।
गांधीजी का भारतीय करेंसी पर इतिहास: क्यों नहीं छपे पहले नोटों पर?http://गांधीजी का भारतीय करेंसी पर इतिहास: क्यों नहीं छपे पहले नोटों पर?