एन चंद्रशेखरन, जो आमतौर पर “चंद्रा” के नाम से जाने जाते हैं, ने भारतीय उद्योग में अपनी विशेष पहचान बनाई है। उनकी कहानी न केवल व्यक्तिगत सफलता की एक प्रेरणादायक गाथा है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे मेहनत और समर्पण से एक सामान्य किसान परिवार का बच्चा देश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित व्यावसायिक समूह का चेयरमैन बन सकता है। 2017 में साइरस मिस्त्री को हटाने के बाद जब चंद्रशेखरन को टाटा समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया, तब यह एक ऐसा निर्णय था जिसने उद्योग जगत को चौंका दिया। इस लेख में हम उनके जीवन, करियर और टाटा समूह में उनके योगदान के बारे में विस्तार से जानेंगे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
1963 में तमिलनाडु के मोहनूर गांव में जन्मे चंद्रशेखरन का बचपन एक साधारण किसान परिवार में बीता। उनके परिवार का आर्थिक स्तर साधारण था, लेकिन चंद्रशेखरन के अंदर सीखने और आगे बढ़ने की गहरी इच्छा थी। सरकारी स्कूल में पढ़ाई के बाद, उन्होंने कोयम्बटूर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने बीटेक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने तिरुचिरापल्ली स्थित रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लिकेशंस (MCA) की पढ़ाई पूरी की।
करियर की शुरुआत
1987 में एन चंद्रशेखरन ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) में इंटर्न के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। यहां से उन्होंने लगातार मेहनत और कड़ी मेहनत के बल पर अपने करियर को आगे बढ़ाया। दो दशकों में उन्होंने टीसीएस में विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं और अपने कार्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और दक्षता से सभी का ध्यान आकर्षित किया। 2009 में, चंद्रशेखरन टीसीएस के सीईओ बने, और इस तरह वह टाटा समूह के सबसे युवा सीईओ बन गए।
टाटा समूह में नेतृत्व
एन चंद्रशेखरन के सीईओ बनने के बाद, टीसीएस ने नई ऊंचाइयों को छुआ। उन्होंने कंपनी को डिजिटल सेवाओं और क्लाउड कंप्यूटिंग में उभरते हुए अवसरों के प्रति संवेदनशील बनाया, जिससे टीसीएस का मुनाफा लगातार बढ़ा। 2022 में, टाटा समूह ने 64,267 करोड़ रुपये का नेट मुनाफा कमाया, जो 2017 में 36,728 करोड़ रुपये था। यह वृद्धि चंद्रशेखरन के कुशल नेतृत्व और रणनीतिक दृष्टिकोण का परिणाम थी।
रतन टाटा के करीबी सहयोगी
रतन टाटा ने चंद्रशेखरन को टाटा समूह का चेयरमैन बनाने का निर्णय लिया, क्योंकि उन्हें चंद्रशेखरन की लीडरशिप क्वालिटी पर भरोसा था। रतन टाटा का मानना था कि चंद्रशेखरन ने टाटा समूह में विभिन्न क्षेत्रों में उनके साथ काम करते हुए एक ठोस अनुभव हासिल किया था। यह न केवल टाटा समूह के विकास के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि यह यह भी साबित करता है कि चंद्रशेखरन के पास टाटा समूह की विरासत को आगे बढ़ाने की क्षमता थी।
पारसी न होने के बावजूद चेयरमैन बनने की कहानी
जब एन चंद्रशेखरन को टाटा समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया, तब कुछ लोगों ने इस निर्णय पर सवाल उठाए। चूंकि वह पारसी नहीं थे, इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक था। लेकिन रतन टाटा के लिए चंद्रशेखरन की क्षमताएं और अनुभव अधिक महत्वपूर्ण थे। यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति की योग्यता और अनुभव किसी भी पारिवारिक या जातीय पहचान से ऊपर हो सकते हैं। चंद्रशेखरन ने यह सिद्ध किया कि यदि आपकी नीयत सही है और आप मेहनत करते हैं, तो आप किसी भी शीर्ष स्थान को हासिल कर सकते हैं।
एन चंद्रशेखरन का योगदान
एन चंद्रशेखरन के कार्यकाल में, टाटा समूह ने कई नई ऊंचाइयों को छुआ है। उनकी नेतृत्व क्षमता ने समूह को नए क्षेत्रों में विस्तार करने में मदद की है। उनके मार्गदर्शन में, टाटा समूह ने विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है, जिसमें टेक्नोलॉजी, ऑटोमोबाइल, स्टील, और ऊर्जा शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने टाटा समूह की ब्रांडिंग और अंतरराष्ट्रीय विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित किया है।
व्यक्तिगत जीवन
एन चंद्रशेखरन का व्यक्तिगत जीवन भी उनके पेशेवर जीवन की तरह प्रेरणादायक है। उनकी पत्नी का नाम ललिता है और उनके एक बेटे, प्रणव चंद्रशेखरन हैं। चंद्रशेखरन को फोटोग्राफी करना और मैराथन दौड़ना पसंद है। वह अब तक कई अंतरराष्ट्रीय मैराथन में हिस्सा ले चुके हैं, जैसे एम्सटर्डम, बोस्टन, और न्यूयार्क।
एन चंद्रशेखरन की कहानी यह दिखाती है कि समर्पण, मेहनत, और सही नेतृत्व के साथ, कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है। रतन टाटा द्वारा उन्हें चेयरमैन बनाने का निर्णय यह दर्शाता है कि योग्यता और अनुभव किसी भी पारिवारिक पृष्ठभूमि से ऊपर हैं। चंद्रशेखरन की सफलता न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम है, बल्कि यह टाटा समूह की सामूहिक ताकत का भी परिचायक है। उनके नेतृत्व में टाटा समूह न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रहा है, और उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।