साइबर ठगी का मामला आजकल तेजी से बढ़ता जा रहा है, और हाल ही में एक घटना ने सबको चौंका दिया है। वर्धमान ग्रुप के चेयरपर्सन और पद्म भूषण सम्मानित उद्योगपति एस. पी. ओसवाल के साथ हुए 7 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी ने इस खतरे की गंभीरता को उजागर किया है। असम और पश्चिम बंगाल के ठगों ने सीबीआई अधिकारियों के रूप में खुद को पेश करते हुए इस बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की। आइए, इस मामले की गहराई में जाएं और समझें कि यह कैसे हुआ।
धोखाधड़ी की योजना
यह मामला तब शुरू हुआ जब एस. पी. ओसवाल को एक फोन कॉल प्राप्त हुआ। कॉल करने वाला व्यक्ति स्वयं को सीबीआई का अधिकारी बताता है और ओसवाल को वीडियो कॉल पर दिखाते हुए अपनी पहचान साबित करता है। उसने सीबीआई की वर्दी पहन रखी थी और कार्यालय में सीबीआई का लोगो भी दिखाया। इस प्रकार, उसने ओसवाल को विश्वास में लिया।
उस ठग ने ओसवाल को बताया कि उनके आधार कार्ड का इस्तेमाल 58 फर्जी पासपोर्ट और 16 डेबिट कार्ड के लिए किया गया है, जो अवैध रूप से मलेशिया भेजे जा रहे थे। यह सुनकर ओसवाल घबरा गए और उन्होंने तुरंत मदद मांगी।
सुप्रीम कोर्ट का फर्जी वारंट
इस साइबर ठगी धोखाधड़ी में और भी चौंकाने वाले पहलू शामिल हैं। ठग ने ओसवाल को एक फर्जी “गिरफ्तारी वारंट” भेजा, जिसे उसने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किया गया है। ओसवाल को यह यकीन दिलाया गया कि उन्हें “डिजिटल गिरफ्तारी” के तहत रखा जाएगा, यदि वे तुरंत जमानत के लिए पैसे ट्रांसफर नहीं करते।
इस प्रकार, ओसवाल ने जमानत की प्रक्रिया के नाम पर 7 करोड़ रुपये दो अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए। जब तक उन्हें धोखाधड़ी का अहसास हुआ, तब तक काफी देर हो चुकी थी।
ठगों की गिरफ्तारी और बड़ी रकम की बरामदगी
लुधियाना पुलिस ने इस मामले में तुरंत कार्रवाई करते हुए गुवाहाटी से दो आरोपियों, अट्नु चौधरी और आनंद कुमार चौधरी को गिरफ्तार किया। इन ठगों के पास से 5.2 करोड़ रुपये बरामद किए गए, जो अब तक की सबसे बड़ी साइबर धोखाधड़ी में से एक मानी जा रही है।
पुलिस आयुक्त कुलदीप सिंह चहल ने कहा कि वर्धमान ग्रुप ने तब शिकायत दर्ज कराई जब ओसवाल को यह एहसास हुआ कि उन्हें ठगा गया है। गिरफ्तार किए गए आरोपी एक नौ सदस्यीय गिरोह का हिस्सा थे, जो अन्य लोगों को भी इसी तरह ठगने का प्रयास कर रहे थे।
पुलिस की कार्रवाई
लुधियाना साइबर क्राइम पुलिस ने तुरंत बैंक खातों को फ्रीज करने की प्रक्रिया शुरू की। ठगों ने ओसवाल से 4 करोड़ रुपये एक खाते में और 3 करोड़ रुपये दूसरे खाते में तीन ट्रांजैक्शन के माध्यम से ट्रांसफर करवाए थे। जब पुलिस ने खाता फ्रीज किया, तब तक आरोपियों ने 1.7 करोड़ रुपये निकाल भी लिए थे।
पुलिस ने शिकायतकर्ता को 5.2 करोड़ रुपये लौटा दिए हैं, जो उन्होंने आरोपियों से जब्त किए थे। यह दर्शाता है कि पुलिस इस मामले को गंभीरता से ले रही है और साइबर अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है।
सीखने की बातें
यह घटना यह दर्शाती है कि साइबर ठगी कितनी गंभीर हो सकती है। इसके पीछे ठगों की योजनाएं बेहद चतुराई से बनाई गई हैं। ऐसे मामलों से बचने के लिए कुछ सावधानियों का पालन करना चाहिए:
- धोखाधड़ी से सावधान रहें: यदि कोई व्यक्ति आपसे पैसे मांगता है, तो उसकी पहचान की पुष्टि करें। वीडियो कॉल पर दिखना ही पर्याप्त नहीं है।
- आधिकारिक संचार के लिए हमेशा आधिकारिक चैनलों का उपयोग करें: किसी भी सरकारी अधिकारी के मामले में सीधे संबंधित विभाग से संपर्क करें।
- जागरूकता बढ़ाएं: ऐसे मामलों के प्रति जागरूक रहें और अपने आस-पास के लोगों को भी इस बारे में बताएं।
- साइबर सुरक्षा उपाय अपनाएं: अपने व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा के लिए मजबूत पासवर्ड का उपयोग करें और समय-समय पर उन्हें बदलते रहें।
साइबर ठगी का यह मामला न केवल एक व्यक्ति के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक चेतावनी है। हमें सजग रहना होगा और ऐसे ठगों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा। जब तक हम सतर्क रहेंगे, तब तक हम इन खतरनाक अपराधियों से सुरक्षित रह सकते हैं। एस. पी. ओसवाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि सावधानी बरतना और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना कितना महत्वपूर्ण है।
अरबपति उद्योगपति से 7 करोड़ की साइबर ठगी: एक नए धोखाधड़ी के खेल का खुलासाhttp://अरबपति उद्योगपति से 7 करोड़ की साइबर ठगी: एक नए धोखाधड़ी के खेल का खुलासा