अफगानिस्तान में तालिबान के पुरुषों पर नए प्रतिबंध: आज़ादी का खात्मा

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अफगानिस्तान में तालिबान के पुरुषों पर नए प्रतिबंध: आज़ादी का खात्मा

अफगानिस्तान में तालिबान के शासन में आए बदलावों ने न केवल महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित किया है, बल्कि अब पुरुषों पर भी कई कठोर नियम लागू किए जा रहे हैं। यह बदलाव तब हो रहा है जब तालिबान ने तीन साल पहले सत्ता में वापसी की थी, और धीरे-धीरे अपने सख्त आदेशों के माध्यम से समाज में भय और असुरक्षा का माहौल बना दिया है।

पुरुषों पर नए प्रतिबंध

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वाशिंगटन पोस्ट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान ने पुरुषों के लिए भी कठोर नियम बनाए हैं। अब पुरुषों को दाढ़ी बढ़ानी होगी, और हल्की दाढ़ी रखने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, जींस पहनने पर भी रोक लगा दी गई है। यह स्पष्ट है कि तालिबान केवल महिलाओं की स्वतंत्रता को ही नहीं, बल्कि पुरुषों के व्यक्तिगत अधिकारों को भी सीमित कर रहे हैं।

इससे पहले, शहरी क्षेत्रों में पुरुष आमतौर पर स्वतंत्रता से रह सकते थे, लेकिन अब उन्हें भी उन सख्त नियमों का सामना करना पड़ रहा है जो उनकी पहचान और व्यक्तित्व को प्रभावित कर रहे हैं। इसके चलते कई पुरुषों में बेचैनी और असंतोष पैदा हो गया है। वे अब सोचने लगे हैं कि अगर उन्होंने पहले आवाज उठाई होती, तो शायद उन्हें इस प्रकार के प्रतिबंधों का सामना नहीं करना पड़ता।

ड्रेस कोड और आचरण संबंधी नियम

तालिबान ने पुरुषों के लिए एक निश्चित ड्रेस कोड लागू किया है। इस ड्रेस कोड के अनुसार, पुरुषों को पारंपरिक इस्लामी पोशाक पहननी होगी। अगर कोई इस नियम का पालन नहीं करता है, तो उसकी नौकरी जा सकती है। इसके अलावा, तालिबान की नैतिकता पुलिस द्वारा दंडित होने का भी खतरा है।

रमजान के दौरान, पुरुषों को नमाज़ में शामिल होना और उपवास करना अनिवार्य है। उन्हें गैर-इस्लामिक गतिविधियों से भी दूर रहना होगा, जैसे सार्वजनिक रूप से संगीत बजाना या किसी सांस्कृतिक समारोह में शामिल होना। ये नियम न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डाल रहे हैं।

लिंग भेद का बढ़ता प्रभाव

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तालिबान के शासन में लिंग भेद और भी अधिक बढ़ गया है। स्कूलों, अस्पतालों, और सार्वजनिक परिवहन जैसी जगहों पर पुरुषों और महिलाओं के बीच बातचीत की अनुमति नहीं है, जब तक कि वे रिश्तेदार न हों। इसका सीधा असर अफगान समाज के सामाजिक ढांचे पर पड़ रहा है।

इस तरह के नियम केवल अफगानिस्तान की सामाजिक स्थिति को नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि को खराब कर रहे हैं। दुनिया भर में लोगों का ध्यान इस बात पर है कि तालिबान का शासन कैसे समाज को एकीकृत करने के बजाय उसे तोड़ रहा है।

अफगान पुरुषों की प्रतिक्रिया

हालांकि तालिबान के नए प्रतिबंधों का मुख्य लक्ष्य महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करना था, लेकिन अब ये नियम पुरुषों के लिए भी चिंता का विषय बन गए हैं। अफगान पुरुष अब सोचने लगे हैं कि उन्हें भी अपनी आज़ादी की रक्षा के लिए उठ खड़ा होना चाहिए।

बड़ी संख्या में पुरुष यह समझने लगे हैं कि मौन रहकर उन्होंने अपनी ही आज़ादी को खो दिया है। यह एक ऐसा बदलाव है जो न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है। अगर पुरुष इस दमन के खिलाफ आवाज नहीं उठाते, तो उन्हें भी अपनी पहचान और स्वतंत्रता खोने का खतरा बना रहेगा।

तालिबान का शासन अफगानिस्तान में केवल महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित नहीं कर रहा है, बल्कि पुरुषों के लिए भी कई पाबंदियों को लागू कर रहा है। यह स्थिति न केवल समाज के लिए, बल्कि देश के भविष्य के लिए भी खतरे की घंटी है।

इस प्रकार की कठोर नीतियों से बचने के लिए आवश्यक है कि समाज के सभी वर्ग एक साथ आएं और अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करें। अफगानिस्तान की जनता को अपनी आज़ादी की रक्षा के लिए साहसिक कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वतंत्र और समान समाज में जीने का अवसर मिल सके।

हमें उम्मीद है कि अफगानिस्तान में लोग एकजुट होकर इन चुनौतियों का सामना करेंगे और एक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करेंगे।

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