हिसार: 29 सितम्बर
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. आर. काम्बोज ने कहा कि भावी पीढिय़ों के बेहतर स्वास्थ्य तथा प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रूप से सरंक्षित करने के लिए वर्तमान कृषि स्वरुप व खेती की पद्धतियों में मौसम और प्रकृति के अनुकूल व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के माइनर मिल्लेटस (मोटा अनाज) आधारित प्रदर्शनी प्लाटों व शोध क्षेत्र का अवलोकन करने के दौरान उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसधानों के अत्यधिक दोहन से जहाँ एक ओर हमारी प्रकृति व वातावरण में असामान्य बदलाव दिखाई दे रहा है वहीं दूसरी ओर लगातार कृषि रसायनों व खादों के प्रयोग से हमारे खाद्यान जहर युक्त होते जा रहे हैं। इसी का परिणाम है कि हर आयु के व्यक्तिओं और पशुओं में तरह तरह की भयानक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं जोकि इस धरती पर मानव जीवन के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा है।
कुलपति ने कहा इस स्थिति से बचने के लिए वर्तमान फसल चक्रों में बदलाव करके नए फसल विविधिकरण हेतू हमारी परम्परागत प्राचीन मोटे व छोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, सावंक, छोटी कंगनी, कुटकी आदि को पुन: अपनाना होगा। जहाँ एक ओर ये छोटे व मोटे अनाज वाली फसलें कम पानी व थोड़े दिन में तैयार हो जाती हैं वहीं दूसरी तरफ ये कीटाणु रोधी होने के साथ साथ पोषक तत्वों में भी भरपूर होती हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को ‘अन्तर्राष्ट्रीय मिल्लेट वर्ष’ किया घोषित
प्रो. काम्बोज ने कहा वैश्विक स्तर पर इन मिलेट्स फसलों के महत्व व भविष्य को देखते हुए भारत सरकार के निवेदन पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने आगामी वर्ष 2023 को ‘अन्तर्राष्ट्रीय मिल्लेट वर्ष’ घोषित किया है जोकि आम आदमी को इन मोटे तथा छोटे अनाज वाली फसलों (मिल्लेटस) के प्रति प्रेरित करने में कारगर साबित होगा। इस दौरान उन्होंने वैज्ञानिकों से विभिन्न प्रकार के माइनर मिलेट्स की संभावित सस्य क्रियाओं व इनके प्रसंस्करण के बारे में विस्तार से चर्चा की तथा इस विषय पर अधिक से अहिक शोध करने के लिए प्रेरित किया।
मोटे अनाज के यह हैं स्वास्थ्यवर्धक गुण
इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एस. के. पाहुजा व सस्य वैज्ञानिक डॉ. ए. के. ढाका ने कहा कि अधिकतर मिल्लेटस पानी की कमी व शुष्क क्षेत्रों में उच्च तापमान की अवस्था में आसानी से उगाये जा सकते हंै। उन्होंने कहा रागी (फिंगर मिल्लेट) कैल्शियम व पोटेशियम का सबसे बेहतरीन स्त्रोत है वहीं चेन्ना (प्रोसो मिल्लेट) और कुटकी (लिटिल मिल्लेट) विटामिन बी-6, फास्फोरस, फाइबर तथा एमिनो एसिड से भरपूर होते हैं। कंगनी (फॉक्सटेल मिल्लेट) हमारी प्राचीन फसलों में से एक है तथा इसमें बीटा केरोटिन, विटामिन और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह विशेष तौर पर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए लाभप्रद है। कोडो मिल्लेट औषधीय गुणों से भरपूर है और यह कफ़ और पित्त दोष को शांत करता है तथा इसमें बैक्टीरिया व जलन रोधी गुण होने के कारण लाभप्रद है। इसको खून शोधक व तंत्रिका तंत्र को मजबूत रखने हेतू भी प्रयोग में लिया जाता है। इनके अतिरिक्त सावंक व हरी कंगनी भी पोष्टिक होने के साथ औषधीय गुणों से भरपूर हैं।