25 नवंबर 1981 की सुबह, एयर इंडिया की फ्लाइट AI-224, जो जांबिया के लुसाका एयरपोर्ट से उड़ान भरकर माहे (सेशेल्स) में रिफ्यूलिंग के लिए रुकी थी, एक ऐसी घटना का गवाह बनी जिसने न केवल उसके यात्रियों के दिलों में भय भर दिया, बल्कि भारतीय हवाई यात्रा के इतिहास में एक काला अध्याय भी जोड़ा। इस फ्लाइट में 65 यात्री और 13 केबिन क्रू के सदस्य शामिल थे। यह घटना उस समय हुई जब सेशेल्स इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हवाई सुरक्षा को एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ा।
हाइजैकिंग का भयावह पल
जब एयर इंडिया के प्लेन में रिफ्यूलिंग का काम चल रहा था, तभी दक्षिण अफ्रीका के स्वाजीलैंड से आए 47 आतंकियों ने एयरपोर्ट पर कब्ज़ा करने की योजना बनाई। उनके पास अत्याधुनिक हथियार और हैंड ग्रेनेड थे, और वे सभी एयर इंडिया के प्लेन में घुसने में सफल रहे। आतंकियों ने तुरंत यात्रियों और क्रू के सदस्यों को बंधक बना लिया। उनका नेता पीटर डैफ़ी, कैप्टन उमेश सक्सेना पर प्लेन को दक्षिण अफ्रीका के डरबन ले जाने का दबाव बना रहा था।
कैप्टन उमेश सक्सेना का साहस
इस खतरनाक स्थिति के बीच, कैप्टन उमेश सक्सेना ने अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया। उन्होंने न केवल आतंकियों का सामना किया, बल्कि उनकी मांगों के खिलाफ खड़े रहने का निर्णय लिया। उनका धैर्य और चतुराई स्थिति को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण साबित हुई। कैप्टन ने प्लेन को एयरपोर्ट पर रोकने में सफल रहे, जिससे यात्रियों को सुरक्षित रखने का एक मौका मिला।
संवाद और रणनीति
हाईजैकिंग की स्थिति में स्थानीय सुरक्षा एजेंसियों और आतंकियों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ। इस समय तक स्थिति बेहद तनावपूर्ण थी। बातचीत में कई बार शांति की कोशिश की गई, लेकिन आतंकियों ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। वे यात्रियों की जान को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे।
सहायता की कोशिशें
सेशेल्स की सुरक्षा एजेंसियों ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने आसपास के क्षेत्रों को सील कर दिया और संभावित बचाव योजनाओं पर विचार करना शुरू किया। बातचीत के दौरान, आतंकियों ने अपने लक्ष्यों को स्पष्ट किया, लेकिन उनके इरादे बेहद खतरनाक थे।
तनाव और डर
प्लेन के अंदर यात्रियों के लिए यह स्थिति बेहद भयावह थी। वे थरथर कांपते हुए छह घंटे बिताए, उनके मन में सिर्फ एक ही सवाल था कि क्या वे सुरक्षित वापस घर जा सकेंगे। हर कोई एक-दूसरे की ओर देख रहा था, किसी भी उम्मीद के साथ।
अंततः संकल्प का समय
हाईजैकिंग के इस खतरनाक घटनाक्रम में, स्थिति को बदलने का एक अवसर आया। स्थानीय सुरक्षा बलों ने आतंकियों के खिलाफ एक सुनियोजित कार्रवाई करने का फैसला किया। इसके लिए समय का सही चुनाव और स्थान का चयन करना आवश्यक था।
बचाव ऑपरेशन
जब बातचीत के सभी प्रयास विफल हो गए, तो सुरक्षा बलों ने एक अचानक कार्रवाई की योजना बनाई। वे प्लेन के आस-पास के क्षेत्रों को घेरे में लेकर अपने इरादे को स्पष्ट करने लगे। यह सब करने के बाद, उन्होंने उच्चतम प्राथमिकता से यात्रियों को सुरक्षित निकालने का प्रयास किया।
सफल बचाव और परिणाम
आखिरकार, स्थानीय सुरक्षा बलों ने अपनी कार्यवाही शुरू की और आतंकियों पर हमला कर दिया। इस ऑपरेशन में कई आतंकियों को पकड़ लिया गया, और यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। यह एक सफल बचाव ऑपरेशन था जिसने सभी को राहत दी।
एयर इंडिया की फ्लाइट AI-224 की यह घटना न केवल एक हाइजैकिंग थी, बल्कि यह एक साहस और धैर्य की कहानी भी है। कैप्टन उमेश सक्सेना और स्थानीय सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति ने एक भयावह स्थिति को संभालने में मदद की। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि किसी भी संकट में साहस और संयम आवश्यक हैं।
आज भी जब इस फ्लाइट का जिक्र होता है, तो यात्रियों में सिरहन दौड़ जाती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें हर परिस्थिति में साहसिकता और धैर्य बनाए रखना चाहिए, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों।
एयर इंडिया फ्लाइट AI-224: 1 भयानक हाइजैकिंग की कहानीhttp://एयर इंडिया फ्लाइट AI-224: 1 भयानक हाइजैकिंग की कहानी